दोस्तों अगर आप यहां तक आए हैं इसका मतलब यह है कि आप भी गोगा जी के एक परम भक्त हैं और आपको यह जानकर खुशी होगी कि आज की इस पोस्ट में हमने गोगाजी के इतिहास के साथ-साथ उनके जीवन से जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात का उल्लेख किया।
चौहान वंशीय गोगाजी का जन्म 11वीं सदी में चुरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर जेवरसिंह-बाछल देवी के घर हुआ। ददरेवा में इनके स्थान को शीर्षमेड़ी कहते हैं जहाँ हर वर्ष गोगाजी का मेला भरता है।
ऐसा कहा जाता है कि गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ (नाथपंथी योगी) के आशीर्वाद से हुआ था।
गोगाजी का विवाह केलमदे (जो कोलमण्ड की राजकुमारी थी) से होना था, परन्तु विवाह से पूर्व ही इनकी मंगेतर को साँप ने डस लिया। गोगाजी क्रोधित हो मंत्र पढ़ने लगे जिससे सर्प मरने लगे। तब नागदेवता ने इन्हें ‘सर्पों के देवता’ होने का वरदान दिया।
गाँव-गाँव में खेजड़ी वृक्ष के नीचे गोगाजी के चबूतरे या थान (गोगाजी की मेड़ी), जिनमें पत्थर पर सर्प की आकृति उत्कीर्ण होती हैं, बने हुए हैं।
गोगाजी ने गौ-रक्षार्थ एवं मुस्लिम आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। इसलिए इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजा जाने लगा। इन्हें ‘जाहरपीर’, ‘गोगापीर’ या ‘गुग्गा’ के नाम से भी पूजा जाता है। गोगाजी को ‘गोगा बाप्पा’ कहकर भी पुकारते हैं।
इन्हें साँपों का देवता माना जाता है। राजस्थान का किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की राखी ‘गोगा राखड़ी’ हल और हाली, दोनों के बाँधता है। इन्हें सर्पदंश से बचाव हेतु पूजा जाता है। सर्प काटे व्यक्ति को गोगाजी के नाम की ताँती बाँधी जाती है।
गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को शीर्ष मेड़ी तथा समाधि स्थल ‘गोगा मेड़ी’ (नोहर-हनुमानगढ़) को ‘धुरमेड़ी’ भी कहते हैं। गोगामेड़ी में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा नवमी ( गोगा नवमी ) को विशाल मेला भरता है।
साँचोर (जालौर) किलौरियों की ढाणी में भी ‘गोगाजी की ओल्डी’ नामक स्थान पर गोगाजी का मंदिर है।
गोगाजी के मंदिर (गोगामेड़ी) के सभा मंदिर के दरवाजे की ऊँचाई पर ‘बिस्मिल्लाह’ अंकित पत्थर लगा हुआ है। गोगाजी के समाधि स्थल के बाहर ‘नरसिंह कुण्ड’ स्थित है, जिसके पवित्र पानी के छींटे व छाप तीर्थयात्रियों के ऊपर दी जाती है। गोगामेड़ी के चारों ओर फैला हुआ जंगल ‘वणी’ या ‘ओयण’ कहलाता है।
गोगाजी की सवारी ‘नीली घोड़ी’ थी। गोगाजी की पूजा भाला लिए योद्धा (भाला लिए घुड़सवार गोगाजी) और साथ में उनके प्रतीक सर्प के रूप में होती है। इनको खीर, लापसी और चूरमा का भोग लगता है।
गोगाजी के तीर्थ यात्री अपने साथ वहाँ स्थित गोरखाना तालाब की पवित्र मिट्टी ले जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि सर्पदंश पर इस मिट्टी का लेप करने से रोगी ठीक हो जाता है।
गोगाजी को हिन्दू एवं मुसलमान दोनों पूजते हैं, अतः ये दोनों संप्रदायों में निकटस्थता स्थापित करने के लिए भी स्मरणीय हैं।
लोकमान्यता है कि गोगाजी के पुजारी को साँप नहीं काटता तथा इनकी शरण में जाने पर सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति पर सर्प का विष नहीं चढ़ता है।
गोगा जी से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
केलमदे
बाछल देवी
जेवरसिंह
गुरु गोरखनाथ
नीली घोड़ी
महमूद गजनवी के साथ युद्ध करते हुए गोगा जी वीरगति को प्राप्त हो गये थे
Wow great it’s good to share knowledge with everyone.
आपका पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा काफी अच्छी जानकारी दी है आपने गोगा जी महाराज के बारे में।